कोविड में 7 दिन तक बेड पर रहने वाले मरीजों में डिप्रेशन और घबराहट ज्यादा – स्टडी

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    Severe COVID-19 tied to depression, anxiety : पिछले दो सालों से भी ज्यादा समय से पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले कोरोनावायरस संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में अवसाद और घबराहट (Depression and Anxiety) की शिकायत भी देखने को मिल रही है. अब एक नई स्टडी में ये सामने आया है कि 7 दिन या उससे ज्यादा समय तक कोविड से पीड़ित रहे लोगों में अवसाद और घबराहट की दर उन लोगों की तुलना में ज्यादा थी जो संक्रमित तो थे लेकिन कभी बेड पर नहीं गए. इस रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि सार्स-कोव-2 (SARS CoV-2) संक्रमण वाले ऐसे मरीज जो अस्पताल में भर्ती हुए उनमें 16 महीने तक डिप्रेशन यानी अवसाद (Depression) के लक्षण देखे गए. ऐसे संक्रमित मरीज जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा, उनमें अवसाद और घबराहट के लक्षण ज्यादातर दो महीने के भीतर ही कम हो गए. सात दिनों या उससे अधिक समय तक बिस्तर पर रहने वालों में 16 महीने तक अवसाद और घबराहट की समस्या 50 से 60% अधिक थी. कोरोना के शारीरिक लक्षणों के जल्दी ठीक होने से आंशिक रूप से ये समझा जा सकता है कि हल्के संक्रमण वाले लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण समान दर से क्यों घटते हैं?

    हालांकि, गंभीर रोगियों में अक्सर सूजन का अनुभव होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों विशेष रूप से अवसाद से जुड़ा हुआ है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘द लैंसेट पब्लिक हेल्थ (The Lancet Public Health)’ में  प्रकाशित किया गया है.

    क्या कहते हैं जानकार
    आइसलैंड यूनिवर्सिटी (University of Iceland) के इंगिबजॉर्ग मैग्नसडॉटिर (Ingibjorg Magnusdottir) ने बताया कि कोरोना मरीजों में डिप्रेशन (depression) यानी अवसाद और एंग्जाइटी (anxiety) यानी घबराहट की उच्च दर देखी गई, जो 7 दिन या उससे ज्यादा टाइम तक बिस्तर पर रहे.

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    लॉन्ग टर्म मेंटल हेल्थ इफैक्ट के बारे में जानने के लिए रिसर्चर्स ने कोरोना से ठीक हुए लोगों के बीच 16 महीनों तक स्टडी की, जिसमें अवसाद, घबराहट और खराब नींद की गुणवत्ता (Depression, nervousness and poor sleep quality) के लक्षण दिखाई दिए. ये आंकड़े डेनमार्क, एस्टोनिया, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और ब्रिटेन में 2,47,249 लोगों के 7 ग्रुप्स पर स्टडी करने के बाद सामने आए हैं.

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    वहीं इस स्टडी के सीनियर ऑथर और यूनिवर्सिटी ऑफ आइसलैंड के प्रोफेसर उन्नूर अन्ना वाल्दीमार्सडॉटिर (Unnur Anna Valdimarsdottir) ने कहा कि ये स्टडी बताती है कि मेंटल हेल्थ इफैक्ट सभी कोविड-19 मरीजों के लिए समान नहीं है. उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की गंभीरता को निर्धारित करने में बेड पर बिताया गया समय एक महत्वपूर्ण कारक है.

    Tags: Coronavirus, Depression, Health, Lifestyle



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